Wednesday, November 24, 2010

ठहर जाने दो .....


खोई खोई सी ये फिज़ा
खोई खोई सी हूँ मैं 
 
जो कहती है सर्द हवा
तो खो जाती हूँ मैं

इस भीड़ में चलते हुए 
शायद सब से जुदा हूँ मैं

 जो खोई है सब में कहीं 
 वो अजब पहेली हूँ मैं

 कुछ और नहीं
 सिर्फ आपके दिल की आवाज़ हूँ मैं....
        

       बादलों में छुपा सूरज कुछ यूँ मुस्कुरा रहा था , जब तलाश रही थी नज़रें उसको तो एक ख्याल आ रहा था ...
सामने गाड़ियो की लम्बी कतार , एक के पीछे एक बस जल्दी थी तो ग्रीन लाइट क्रोस करने की . रिक्शे में बैठे ग्रीन लाइट के इंतज़ार में  देखने लायक नज़ारा था तो बस ,,, traffic का . इसी बीच एक खुबसूरत- सा पल गुजारिश कर रहा था कि कोई नज़र उसको कैद कर ले और ले जाये अपने साथ . पटरी पर कबूतर traffic के शोर से इधर- उधर बिखर गए ........ उस उड़ान को देखते ही देखते जब देखा आसमान कि ओर तो बहुत अच्छा लगा. एक टक निहारती रही फिर मुस्कुराई , सोचने लगी इस भीड़ से हट कर भी एक दुनिया है ....
     पता ही नहीं चला कब रेड लाइट ग्रीन हो गयी और सब के साथ फिर वही एक के पीछे एक वाहन ...... रिक्शा वाले भैया ने कब फुर्ती से ग्रीन लाइट क्रोस की और वो सर्द हवा मुझे छू कर अपने होने का एहसास दे गयी पर कुछ देर तक वहीं..........
खोई खोई सी थी मैं ..... 
  
                                                      Sushmita....

Saturday, November 20, 2010

क्यूंकि बूढ़ा हो चला हूँ मैं .....( एक ख़त )


जिन आँखों में सपने हुआ करते 
अब उन आँखों की रौशनी धुंधलाने लगी 

उन नन्हे कदमो से
एक गीत गुनगुनाने लगी 

जिन नन्हे कदमो को बढ़ना सीखाया 
उन नन्हे कदमो से एक सपना सजाया 

अब उन कदमो में जान नहीं 
जहाँ लाड -दुलार ने बचपन बिताया 

क्यूंकि बूढ़ा हो चला हूँ मैं ..... 

सहारा है सफ़र में 
एक लाठी का

किस को सुनाऊ मन की बात
कहने को है बहुत-सी बात  

ढूंढ़ता हूँ परछाई में 
अपनी ही परछाई 

आँखों के आंसू भी
तरसते है उस स्पर्श को

जीवन के हर मोड़ पर
कड़ी से कड़ी जोड़ता चला

एक राही हूँ इस सफ़र का
अकेला ही तड़पता रहा

क्यूंकि बूढ़ा हो चला हूँ मैं  .....





  











Kyunki Boodha Ho Chala Hun Main..... (ek khat)

jin aankhon me sapne hua karte
un aankhon ki roshani dhundhlaane lagi 

un nanhe kadmon se
ek geet gungunane lagi

jin nanhe kadmon ko badhna sikhaya
un nanhe kadmon se ek sapna sajaya

ab un nanhe kadmon me jaan nahi
jahan laad-pyaar me bachpan beetaya

kyunki boodha ho chala hun main........

sahara hai safar me
ek laathi ka

kis ko sunau apne mann ki baat
kehne ko hai bahut si baat

dhundhta hun parchhai me
apni hi parchhai

aankhon ke aansu bhi taraste hai
us sparsh ko

jeevan ke har modh par
kadi se kadi jodhta chala

ek raahi hun is safar ka
akela hi tadapta raha

Kyunki boodha ho chala hun main......
                                                                                               Sushmita ...

Friday, October 22, 2010

चले उस पार ...



ख़्वाबों को समेटे हुए     
हर पल से गुज़र बैठे.....


 अक्सर ख्यालों में कुछ अजीब दिलकश हमारी सोच पंख लगा कर उड़ान भरने लगती है , यह उड़ान  मीलों दूर की हो या पास की .....क्या फर्क पड़ता है .बस अब तो उड़ान भर चुके , यह डोर कहा तक जाए कुछ पता नहीं . 
जान कर करना भी क्या है , बस इत्मीनान से आँखे मूंदे 
उस ख्वाब की गहराई तक पहुंचना है . 
पहुंचना है उस एहसास तक जिसे महसूस किया पल भर में . 
ज़रा एक कोने में बैठ जाइए और सुनिए अपने मन की आवाज़.
. . .          बहुत कुछ कहना चाहती हूँ ... पर शब्द नहीं मिलते , शब्द मिलते है तो बयान नहीं कर पाती .....  कोशिश है हर पल को खूबसूरती से कैद कर उन्हें शब्दों के सहारे जान डाल दी जाये वो दृश्य जीवित रूप में हम सब के सामने दिखाई दे ताकि हरी-हरी पत्तियों के बीच ये फूल लहरातें दिखाई दे ..
                                                                                      


     बारिश की हर एक-एक बूँद आपको अपनी ओर    आकर्षित करती है , शायद इसलिए क्यूंकि मन कुछ तो कहता है . . . खुले आसमान के नीचे आँखे   बंद कर हाथ फैलाए एक ही जगह पर घूमना , चेहरे पर मुस्कान ले आता है .  शाम के वक़्त हाथ में चाय की प्याली लिए बालकोनी से बाहर का  नज़ारा खूब भाता है .  आपके कुछ अपने पल याद दिलाना चाहती हूँ , ऐसे ही कुछ पल जरुर अपने आप के लिए संभाल कर  रखे क्यूंकि इस पर न तो किसी का कोई हक होता न किसी की रोक-टोक . सिर्फ आपके खुबसूरत पल..... जिसे याद करते वक़्त आप हमेशा खुश रहते है.  

यूँ तो मुस्कुराना हमें भी आता है 
यूँ तो पलों को जीना हमें भी आता है 

शब्दों में कैद कर यहाँ तक पहुंचाना
उन्हें एक जान देना , हमें नहीं आता है .....
 
  

















  Sushmita...

Monday, October 18, 2010

कुछ बातें .....


सफ़र कुछ बातों.. का
यूँ ही  गुज़र ना जाए ,, 

ये  लम्हा समय रथ  पर  सवार
कहीं बीत ना जाए  ..


 एक गुजारिश है
समय से, बस ठहर जाए

आप और हम यूँ ही
कुछ बातें कहते जाए.....




   सोचती हूँ ' कुछ बातें ' .. कुछ ख़ास नहीं , पर फिर भी लगाव है इससे . कुछ अपना है हमेशा से........ 
काफी  दिन बीत गए कुछ कहने का मन ही नहीं हुआ , 2 -4 बातें ही होती है कहने को  . पहले मैंने सोचा अब आगे कुछ नहीं लिखूंगी , पर ऐसा हो ही नहीं सकता क्यूंकि  मुझे खुद ही कुछ अधूरा-अधूरा लगने लगता है . देखिये इस बेंच की ओर

कुछ ऐसा ही लगता है मुझे अपना ब्लॉग ..   नहीं जानती क्यों ?
समय कुछ ख़ास नही रात के 12 :20  बजे है घड़ी में . याद आने लगा है जब पिछली सर्दियों में मैं यूँही रोज़ कुछ लिखती थी और लिखते-लिखते हाथ ठण्ड से बेजान हो जाते . उस समय अच्छा लगता था रोज़ रोज़ कुछ लिखना , बातें करना . . . आज मन नहीं ये ब्लॉग अधूरा ही रहने वाला है ...


उम्मीद करती हूँ आप मेरा ब्लॉग पढ़ कर मेरा हौसला बढ़ाएंगे  ... जिससे   ' kuch baatein.... '  का सफ़र चलता रहे .....

Sushmita...

Friday, September 10, 2010

ना जाने क्यों ...

सब कुछ तो कहती है दिल से
फिर क्यों कहते है , क्या कुछ छुपाती है वो



सब कुछ तो कहती है जुबान से
फिर क्यों कहते है, क्या कहना चाहती है वो



सब कुछ तो कहती है आँखों से
फिर क्यों कहते है, क्या चाहती है वो


एक मुस्कुराहट से छुपा देती है
हर बात को वो , हर एहसास को वो
























Sushmita...

Wednesday, September 1, 2010

चाहत ...

एक ख्वाब में रुसवाई सी

एक रूबरू परछाई सी

चलती हूँ हर कदम यूँ ही

एक बात है अधूरी कहानी सी......


                                                     




















Sushmita.....

Monday, August 30, 2010

ख़ामोशी .......

राह तकते है यूँ ही पलके बिछाये
जाने किस घड़ी वो सामने से आये

दिन कटते नहीं यूँ खामोश से
                     गुप-चुप करते है बातें, रातों से                                      

वो फलक पर चमकता सितारा कुछ बोला
नज़रों का इशारा वो क्या समझा

छम-सा रह गया वो मंज़र
पलक झपकते ही वो सामने से आये

ठहर जाते  है  वो पल
एक उम्मीद करते है हर पल

अब जाना नहीं
उम्मीद करते है इस पल

काली चादर की आड़ में
                         पलकों की छाव में                                                 

एक याद बन कर
        रहना हमसफ़र .............

                                                                                                          
  


 Sushmita....

Monday, August 16, 2010

16/08/10

        शाम के 5 :30 बजते ही आसमान में नज़ारा देखते ही बनता है . नीले गगन में बादलों का नारंगी रंग आँखों को खूब भाता है . इतनी देर में एक आवाज़ सुनाई दी किसी के चलने की आवाज़ ... कोई सीढियो से चल कर छत पर आ रहा था . यह क्या..? आवाज़ बंद हो गयी , देखा तो यह कदम नंगे पाँव आगे बढ़ रहे थे . यह कोई नयी  बात नहीं थी , वो रोज़ शाम होते ही छत पर आती और चप्पले एक कोने पर रख कर या तो छत की आखिरी सीढ़ी पर या फिर एक कुर्सी ले कर खुले आसमान के नीचे बैठ जाती .



   जाने ऐसा क्या था उस छत पर जो वो खिंची चली आती थी या यूँ कहे कि उसकी आदत बन गयी थी . पहले तो वो बस यू ही टहलती रहती थी . पर धीरे-धीरे उसकी इसी आदत में एक और साथी उसका साथ देता था . अब वो अकेली नहीं एक कॉपी और पेन साथ लाती थी . जाने क्या- क्या लिखती रहती थी . कभी कुछ लिखना तो कभी एक ही जगह काफी देर तक खड़े रहना . न जाने ऐसा क्या शौक था उसको ? न तो वो किसी को बताती न पढ़ कर कभी सुनाती बस कुछ वाक्यों को कैद कर पन्नो पर उतार देती . हमेशा कहती उसकी एक दुनिया है जो बहुत ही खुबसूरत है .
        
  

 समय बीतता गया और उन कदमों कि आहट कहीं पीछे ही रह गयी .....







 
 
 
 
 

  Sushmita....

Saturday, July 31, 2010

a place ....

       बहुत मन करता है किसी ऐसी जगह जाऊ जहाँ कोई भी नहीं हो, कुछ वक़्त सिर्फ अपने लिए निकाल सकू ...पर ऐसा कभी नहीं होता . हम हर जगह सबके बीच घिरे रहते है . ऐसे में अगर कुछ वक़्त निकाला जाये तो कैसे ?


      जब इस पिक्चर को मैंने देखा तो बहुत अच्छा लगा . ऐसा नहीं है कि मुझे अकेले रहना पसंद है पर कुछ पल के लिए मुझे अकेले रहना बहुत पसंद है. ऐसे समय में मैं अपनी दुनिया में खोई रहती हूँ ............... बिल्कुल ऐसे ही
   

        जितने भी सवाल दिमाग में घूम रहे होते है ,सब का जवाब पाना आसान हो जाता है . खैर मेरी छोड़िए हर इंसान अपने आपको खुश रखने के लिए तरह-तरह के नुक्से अपनाता है.  ना तो यह कोई नयी बात है जो आपसे कह रही हूँ पर यह एक एहसास है जो रोज़मर्रा कि ज़िन्दगी में हम सब महसूस करते है....  

       इसके आगे मैं कुछ नहीं कह सकती क्यूंकि कुछ पल अधूरे रहने चाहिए इससे आगे आने वाले पलों का बेसब्री से इंतज़ार रहता है .....

                                                                            Sushmita...

Tuesday, July 6, 2010

6 July

      कल रात ठीक से सो नहीं पाई या यूँ कहू  कि नींद नहीं आई , सोचा था आज से जल्दी उठाना शुरू करुँगी पर हर रोज़ की तरह आज भी यही हुआ . देर से जागना मेरी  आदत बन गयी . सुबह उठी तो आँखे नहीं खुल पाई शायद वो आंसू मेरी आँखों में ही रह गया .. कल रात बहुत कुछ याद कर रही थी और थोड़ी-सी भावुक हो गयी . जब मैंने आँखे खोली मोबाइल में देखा तो १०:३० हो गये थे और फिर सर हिलाते हुए मूड ऑफ हो गया . कल रात सच में बिल्कुल सुकून नही था , पता नही क्यों इतना सोचा करती हूँ मैं ? 
      
         
      ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने मेरी नींद मुझसे छीन ली हो . सब के साथ-साथ मेरी नींद भी मुझसे दूर भागती है . सुबह हुई, घर का काम करते- करते देखा कि बाहर मौसम ने बहार ला दी थी . आसमान इतना सुंदर लग रहा था , बहुत ही प्यारी हवा चल रही थी . दो- तीन दिन से बारिश जो दस्तक किए हुए  है .  फिर तेज बारिश होने वाली थी , बाहर देखते-देखते खिड़किया बंद करने लगी . मुझे बारिश बहुत अच्छी लगती है पर तब भी बस अपना अधूरा  काम पूरा करने में लगी हुई थी . जल्दी नहाना था क्यूंकि बहुत भूख लग रही थी .  बारिश देख मन नहीं लग रहा था , सोचा भीग जाऊ . कई बार बारिश में भीगी हुई हूँ पर कभी इसका आनंद नहीं लिया .
सब काम छोड़ मै सीधा छत पर गयी. आज भीगी भी, आनंद भी लिया और खूब भीगी . पर...... तब भी कुछ अच्छा नहीं लगा . बारिश में भीगते भीगते ठण्ड लग रही थी पता था पक्का बीमार हो जाउंगी पर फिर भी.. .

         तेज़ हल्के त़ेज हल्के बादल बरस रहे थे . मेरा यूं लगातार भीगना साथ में ठंडी हवा मुझे कमज़ोर बना रही थी .. पर आज मुझे बिल्कुल भी बारिश का आनंद नहीं हुआ शायद इसकी वजह कल रात की ख़ामोशी थी जो मुझे परेशान करती जा रही है.  मैं जो अपनी सपनो की दुनिया मै हर छोटी-छोटी ख़ुशी , छोटी-छोटी बातों को इकट्ठा कर एक खुबसूरत-सा पल बनती हूँ , चाहे शब्दों के ज़रिये उसको कैद करती हूँ या कल्पना में समेटे रखती हूँ . पर आज जब मैं बारिश को कैद नहीं कर पाई तब मेरी दुनिया अधूरी और धुंधली होने लगी ...
या तो मै बहुत बदल गयी हूँ या मेरे आस पास लोग बदल गए है ........
या तो मै उन्हें समझ नहीं पाती या वो मुझे ....

बस अब सब से दूर जाने का मन करता है .....

Sushmita...

Sunday, June 13, 2010

तेज हवाएं

दिन बीतते रहे
रातें गिनती रही
राहें चलती रही
ख़ामोशी कायम रही ....
                                                                                            
न जाने मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है
एक मुस्कराहट के लिए सफ़र करना होता है


सोचती रहती हूँ हर बार ही ऐसा क्यों होता है
पर हर बार दिल तस्सली देता रहता है
" इतनी जल्दी नहीं हारना
इतनी जल्दी नहीं रुकना "



मन बदलते हुए , कहीं ओर देखते हुए
मुस्कुरा देती हूँ , मुस्कराहट कायम रखने के लिए
एक नया रुख ले लेती हूँ




कभी - कभी तो सोचती हूँ कि
" मुझसे अच्छी तो यह हवा है
जाने कहाँ से आती है , जाने कहाँ को जाती है
कभी तेज कभी शांत बस बहती रहती है
या यूँ कहू बस चलती रहती है "


मेरी जिंदगी भी कुछ ऐसी ही है
कभी तेज तो कभी शांत
सीखना तो चाहती हूँ बदलना तो चाहती हूँ


" काश मैं ऐसी ही बन जाऊ और कभी न रुकू "


                                            हमेशा कि तरह फिर कुछ अधूरा-अधूरा सा लगने लगा .........

                                                                                                                                       Sushmita...

Tuesday, March 30, 2010

हम और हमारा समाज

    कितने मतलबी है न हम इंसान ? किसी की परेशानी किसी के दुःख से हमे क्या लेना देना . हमको मतलब है तो सिर्फ अपने आप से और कभी-कभी अपने परिवार से भी ... पर आज हम अवश्य यह नहीं कह सकते की हमको अपने परिवार की भी उतनी ही चिंता है जितनी अपनी . क्यों ? क्यूंकि हम खुद ही नहीं जानते हम क्या कर रहे है क्यों कर रहे है किसके लिए कर रहे है ... जिस समाज में हम रह रहे है उस समाज में और भी लोग है जो अलग-अलग स्थिति में रह रहे है. पर हम यकीनन यह कह सकते है कि भाई जो हम कर रहे है अपने लिए कर रहे है और इन लोगों का कहना तो यह है पहले हम अपने लिए तो कर ले , अपने परिवार के लिए तो कर ले फिर दूसरे के लिए सोच लेंगे . यह कह कर सब कन्नी काट जाते है " चलो पीछा छुटा, पता नहीं लोगो को हमसे क्या परेशानी है . लगता है सब हमसे जलते है, हमारा सुकून लोगो को गवारा नहीं लगता ."

      आज हर इंसान जब घर लेने कि सोचता है तो सबसे पहले यह दिमाग में घूमता रहता है जहाँ भी हम घर ख़रीदे वो एक अच्छे area में हो , ताकि हमारे बच्चे हमारा परिवार अच्छे लोगो के साथ उठे-बैठे . लाज़मी है कि क्यों हम किसी गंदे बदबूदार वातावरण में रहे. हम अच्छे कपड़े पहनते है अच्छे बन कर रहते है तो क्यों हमारे बच्चे किसी ऐसे बच्चे के साथ खेले जिसको नंगे पाँव गलियो में घुमने कि आदत हो , मिटटी में खेलना अच्छा माने. बस हमे तो रहना है बड़े ठाठ से .
   
अब अगर में आपसे पूछु के आप अमीर घर के बच्चे और गरीब घर के बच्चे क्या अलग-अलग रूप में जन्मे होते है . क्या गरीब घर का ही छोटा नन्हा बच्चा गन्दा,बिना कपड़े पहने घूमता है .क्या अमीर घर के बच्चे कभी अपने कपड़ो पर खाना नहीं गिराते या खाते-खाते अपना चेहरा गन्दा नहीं करते , क्या अमीर घर के बच्चे चुपके से मिटटी नहीं खाते ? दोनो ही बच्चे वो सामान हरकते करते है जो देखी जाती है , फर्क इतना है पैदा होते ही बच्चे के नाम के साथ अमीर गरीब का ठप्पा लग जाता है . इस ज़िन्दगी में दिन फिरते देर नही लगती , किस्मत हमारी सोच से कई गुना आगे भागती है और हम बैठे ही रह जाते है .

          मिटटी के बर्तन बनाने वाले , हस्तशिल्प , बुनकर यह सब बनाने वाले वही गरीब लोग और उनके घर काम करने वाले बच्चे होते है ,जिन्हें आप कुछ नहीं समझते . बड़ी-बड़ी मीलो में काम करने वाले कुछ लोग बहुत गरीब भी होते है जो आपके लिए एक-एक धागे से पूरी साड़ी , कपड़ा बना कर तैयार कर देते है . मैं यह मानती हूँ कि आज आदमी की जगह मशीनों ने ले ली है पर उन मशीनों को चलाने वाला इंसान ही है . चलिए यह भी छोड़िये कि हर मशीन को चलाने वाला गरीब ही होगा पर आज बहुत-सी कलाकृतिया \   संस्कृति ऐसी है जो गरीबो ने संभाल कर रखी हुई है  . आज भी हमे उस डुगडुगी कि आवाज़ अच्छी लगती है जब गली से गुज़रता हुआ एक आदमी हाथ में एक डोरी से उस खिलोने को सड़क पर चलाता हुआ लाता है ,अपने सर पर टोकरी ले कर चलता है जिसमे तरह तरह के हाथ के बने हुए खिलोने होते है जिसे आज भी बच्चे खूब पसंद करते है चाहे वो अमीर हो या गरीब .



   यही बच्चे जिसको आप गरीब कहते है सब से ज्यादा अपने घर के काम में भी वही बच्चे  हाथ बंटाते है . छोटे छोटे से यह बच्चे जिन्हें  किताबे ले कर चलना चाहिए आज हाथ में हतोड़ी छैनी ले कर धातु के टुकड़े पर डिजाईन बनाते नज़र आते है या कुछ और काम करते नज़र आते है. क्या यह अपना बचपन नही खो रहे ?परिवार के हालात से मजबूर ये नन्हे अपना बचपन खो , परिवार के सुख दुःख में साथ देते है. क्या इन बच्चो को अपना बचपन, खेल- कूद प्यारा नहीं ?




     


यह छोटा बच्चा जो मिटटी में खेल कर आता है  .... देखिये इनके चेहरे कि हंसी...





क्या इसकी मुस्कराहट यह ज़ाहिर कर रही है की ये किस परिवार का बच्चा है ?



 
   


        बचपन में ही यह अमीर गरीब कि बातें सीखाने वाले घर वालो को सही गलत सीखाना चाहिए . आज बड़े होने के बाद भी हमारे मन में एक छवि बन जाती है कि गरीब लोगो से दूरी रखनी चाहिए . हमे अपने आस पास उन लोगो का भी ध्यान रखना चाहिए जो उन चीजों के जरूरतमंद है जो हमारे लिए अनुपयोगी है , हमे उनका साथ देना चाहिए . आज आप उस जगह ज्यादा देर नहीं रह सकते जहाँ काफी गंदगी है मच्छर है और बहुत से लोग उस बस्ती में रह रहे है सो रहे है जहाँ उन्हें इस परेशानियो का रोज़ सामना करना पड़ रहा है .  लोगो के पास पैसा नहीं है , काम धंधा नहीं है . अपनी आजीविका कमाने के लिए अपने बच्चो से मजदूरी करवाते है जो कानूनी जुर्म है . पर यह लोग भी क्या करे सरकार अपने  order जारी कर देती है पर उस पर काम करने कि जिम्मेदारी कोई नहीं उठाना चाहता . क्यों करे कोई , जैसा कि मैंने पहले ही कहा सबको बस अपने से मतलब है सिर्फ अपने से ...  .

    परिवार के हालात से मजबूर ये नन्हे अपना बचपन खो , परिवार के सुख दुःख में साथ देते है. क्या इन बच्चो को अपना बचपन, खेल- कूद प्यारा नहीं. छोटे-छोटे बच्चे जिन्हें जिम्मेदारी का मतलब नहीं पता होता वो अपने माता-पिता के साथ मजदूरी करते नज़र आते है क्यूंकि "अगर वो कमाएंगे नही तो खायेंगे क्या "? इस बच्चो के सामने सिर्फ एक यही सवाल रखा जाता है . परिवार में कोई पढ़ा- लिखा नहीं होता ना इन लोगो को परिवार नियोजन का कुछ ज्ञान होता है ना बच्चो के भविष्य का कुछ अता पता . सरकार नए-नए कार्यक्रम लाती है पर उनको समझाने वाला कोई नहीं होता क्यूंकि कौन slum area में जा कर कैंप लगाये जिससे यह लोग जागरूक हो . एक परिवार में 5 -6 बच्चे जिनके भविष्य का छोड़िये उनके खाने तक का नहीं पता . सुबह का निवाला हलक से उतर तो गया पर रात का कुछ  नहीं पता . ऐसे में घर के छोटे-छोटे नन्हे बच्चे मजदूरी करते नज़र आते है और इसमें किस की गलती है ? परिवार के मुखिया की या उस सरकार की जो जागरूक करने के कार्यक्रम को सही ढंग से पूरा नहीं करती . आज जगह-जगह banner खड़े तो कर दिए पर उसे पढने के लिए एक पढ़ा-लिखा होना जरुरी है . ऐसे में बच्चे बचपन नहीं खोएंगे तो क्या करेंगे .



      और हम पढ़े लिखे लोग भी कुछ नहीं करते .... समझाना तो दूर ऐसी बस्तियों में पैर रखना जरुरी नहीं समझते सिर्फ इसलिए क्यूंकि इससे हमे क्या ... पहले हम अपने लिए तो सोच ले फिर दूसरे के लिए . हमारा समाज हम जैसे लोगो से ही है ,हम इसे नहीं सुधारेंगे तो कितनी ही अच्छी जगह रह लो ऐसे समाज का सामना कहीं न कहीं करना ही पड़ जायेगा ....
 
          
 
Sushmita....

Sunday, February 28, 2010

Happy B'day SANA..

HappY BirthdaY
my sweet & lovely friend
 Sana....



ye hi dua karti hu Khuda se... 
bahut saari khushiya tumhare jeevan me aaye
tum yuhi khush rehna muskuraati rehna
insha allah meri dua kabool ho 



  

Sushmita...


छू लेने दो..

हल्के -हल्के से सुन
धीरे -धीरे से सुन

ये आहट है कैसी
ये हलचल है कैसी

ये मस्ती है कैसी
ये बेचैनी है कैसी

उनकी आँखों से पढ़
उनकी खामोशी से सुन

ये मुस्कुराहट का सुरूर
ये पास आने का जूनून

इन ख़्वाबो की नैया को चुन ले
खुली आँखों से सपने को छू ले

तो सपनो की दुनिया से बाहर निकल
इस सपने को हकीकत में बदल



                                                                                                                                               Sushmita...

Monday, January 25, 2010

Wake up call.....

      सर्दियो की इस ठण्ड में सुबह जल्दी उठे तो क्यों उठे ? वो भी इस ठण्ड में .... पर क्या करे हर कोई तो खाली नहीं होता न मेरी तरह . पर क्या करे किसी को ऑफिस जाना है , किसी को घर का काम करना है , तो कोई बच्चो को स्कूल भेजने के लिए जल्दी उठता है ताकि उनके लाल दुलारे घर का बना पोष्टिक भोजन ले कर जाए  और बड़े बुजुर्ग उनकी तो आदत होती है जल्दी उठने की... हमारे दादा- दादी, नाना - नानी घर के बड़े जल्दी उठ जाते है . आदत कहे या एक नियम जी हाँ, आदत नहीं नियम . बड़े बुजुर्गो का मानना है सुबह सूर्य उदय से पहले जाग जाओ , जल्दी से घर की साफ़-सफाई कर स्नान कर के सूर्य नमस्कार करे , सूर्य को जल चढ़ाए और अपने दिन की शुरुवात करे .अब हर घर के अपने अपने नियम .

     तो बात यह है कि आपके दिन कि शुरुवात कैसे होती है क्या आपको घड़ी कि ट्रिंग ट्रिंग जगाती है , मोबाइल का अलार्म या किसी के चिल्लाने की आवाज़ / मम्मी स्टाइल " उठ जाओ स्कूल नहीं जाना क्या या ऑफिस नहीं जाना क्या " (हा हा हा एक औरत के अनेक रूप ) ? जब मैं स्कूल जाती थी कभी अलार्म की आवाज़ सुनाई नहीं दी चाहे वो कितनी देर से बजे ही जा रहा है बजे ही जा रहा है पर  ..... मम्मी की आवाज़ से जरुर जग जाती  और टालते हुए फिर रजाई तानी और सो गए वापस से क्यूंकि छुट्टी करने के नए नए बहाने  . चलो अलार्म हो या मम्मी हो ,टाल सकते है ..... किन्तु परन्तु तो यह है भैया by chance पापा जी मुझसे पहले उठ गए और देखा " ये लड़की अभी तक नहीं उठी " तो बस मेरा नाम ले के " उठ जा "  फिर क्या था ...नींद जाये  कुए में , चाहे कितनी ठण्ड हो पर " उठ जा sushmita वरना डांट की बरसात हो जाएगी" ऐसे में मेरे जैसी नन्नी सी जान बेमन से उठती और चुपचाप स्कूल के लिए ready होती .


   बात तो यह है dear बहाना चाहे कुछ भी हो इन सभी को हम तो एक ही नाम देना चाहेंगे    "wake up call "




     जी हाँ और जाहिर सी बात तो यह है अगर सुबह सुबह प्रकति के ऐसे खुबसूरत नज़ारे देखने को
मिले तो दिन की शुरुवात और भी अच्छी बहुत खुबसूरत हो जाती है . सोचिए चाय की प्याली हाथ में और सामने ऐसे खुबसूरत नज़ारे ....... कभी कभी ऐसे ही छोटे छोटे पलों को आप ही कहीं न कहीं एहमियत देते है और चाहते भी है जब आप नींद से जागे बिना किसी टेंशन के

"कि जी जल्दी उठाना है वरना ऑफिस के लिए लेट हो जायेंगे" . आप जागे और गर्म गर्म चाय की प्याली आपके सामने रखी हो , आप उठ कर अपनी बालकोनी में जाए और चाय की चुस्कियों के साथ प्रकति से भी कुछ बातें करे.

 kuch baatein..   दिल से जी हाँ बिलकुल दिल से ....

     आज kuch baatein.. में बस इतना ही क्यूंकि चाय का नाम लेते ही आपकी तरह मेरा भी मन करेगा क्यों ना एक एक कप चाय हो जाए .....



  जी हाँ, मुस्कुराते रहिये खुश रहिये और वो... वो जो आपकी book है ना.... अरे ! वही जिंदगी की secret book उसमें ऐसे ही खुबसूरत पल अपने खयालों की कलम से रंग भरी बना दीजिये यकीन मानिए कभी फुर्सत के पलों में यही पल याद करने में बहुत मज़ा आयेगा कि आप किस तरह से इन्ही छोटी छोटी बातों को एक खुबसूरत अंदाज़ से जीते है और कितनी एहमियत देते है .



good night ....

Friday, January 22, 2010

Darna Mana Hai .........

      22 jan ..... abhi kuch hi din pehle kitni excitement thi ke ab new year aa raha hai , planning kar rahe the kaha jaana hai , kya karna hai aur ab 1jan se 22 jan ho gayi batao to jara .. pata chala kaise time beet gaya ... time to samaye rath par baith kar bhaag raha hai .

   kher chodo yeh dimaag ghumaana , baat karte hai meri (ha ha ha) .

   Aaj mein khush hun thodi thodi nahi thodi jyada pata hai kyuuuuuu? mujhe bhi nahi pata . Waise mujhe khush hone ke liye koi bahaana nahi chahiye bas kisi kisi din ki starting hi achhi hoti hai aur poora din achha achha rehta hai . Arre jyada soachiye mat isme koi logic nahi , betuki baatein karna meri aadat hai . ab kya karu baat karne ke liye koi topic nahi hai na ... isliye aapko paka rahi hun .

     Aaj kal hum log kaise ho gaye hai ajeeb se Bhala baat karne ke liye bhi koi topic hona chahiye , nahi na....... phir aisa kyu hota hai ? me aur aage likhna nahi chahti kyunki likha toh ye pakka hai aage se aap mera blog nahi padhenge ...

Isse pehle aap bhaage ,,,, me hi jaa rahi hun




      ha ha ha  DARNA MANA HAI....................

    

Friday, January 15, 2010

14jan(horrible) / 15jan( lovely day)...... ((((( ON AIR ))))))

  आज 14 जनवरी...
 कोई कहता है मुझे बहुत खुश हूँ मैं .. कोई कहता है बहुत खुश रहती हूँ मैं....
खुश हूँ मैं और खुश रहती हूँ मैं , देखने में मिलते-जुलते शब्द पर हो सकता है इसका मतलब अलग भी हो



खुश हूँ मैं - जो अपनी आत्मा अपने दिल से खुश है और ज़ाहिर भी कर रहे है
खुश रहती हूँ मैं - जो खुश रहते है खुश दिखते भी है , हो सकता है खुश ना हो कर भी खुश रहते है

इंसान खुश तब भी रह सकता है जब वो अपनी आत्मा अपने दिल से दुखी है, कहने में एक जैसा परन्तु अर्थ अलग .




     
       कल मैं आपसे ये सब बातें कर रही थी ओह आज 15 जनवरी है दरअसल ऊपर लिखी बातें मैंने कल लिखी थी . अधूरा लेख आज पूरा करना चाहती हूँ . लिखते लिखते कल मेरी तबियत खराब हो गयी थी , मैंने झट से कंप्यूटर बंद किया और सोने चली गयी पर तबियत ज्यादा बिगड़ जाने से मुझे रात 1 बजे डॉक्टर के जाना पड़ा . आज कुछ ठीक हूँ आराम करते करते मेरा मन किया वापस अपने लेख की और ध्यान दूँ और आप सभी के साथ फिर से इस सफ़र में आगे बढना चाहूंगी. कोशिश करुँगी आगे से ऐसी कोई भी गंभीर बातें ना करू इससे मेरी तबियत खराब हो जाती है और जिसको भी पता चलता है वो फिर मुझे डांटते है , ना बताऊ तो भी नाराज़ हो जाते है इसलिए यहाँ मैंने ज़िक्र कर ही डाला ही कल मेरी तबियत खराब हो गयी थी...

    आज का दिन बहुत खुबसूरत रहा वो ऐसे ...... आज मुझे delhi university जाना था , किसी कारण वश मैं लेट हो गयी . हुआ यूँ मैंने internship लैटर दिया था तो कल कॉल आई की Sushmita कल आपका interview है और सुबह 10 :30 बजे आ सकती है आप ? मैंने कहा जी जरुर .... अब तब से मैं सोच में पड़ गयी की interview ? क्या होगा interview में पता नहीं क्या होगा ( मुझे लगा internship के लिए कोई interview होता होगा पता नहीं मुझे बिलकुल समझ नहीं आया की आज क्या होना था ). मैं गयी एक तो पहले ही लेट बहुत बुरा लग रहा था interview में ही लेट क्या होगा मेरा ? डर डर कर रेडियो स्टेशन में एंट्री की . जैसे ही अंदर गयी किसी ने कहा सुष्मिता आप कितनी लेट हो गयी ऐसे नहीं होता आपको टाइम पर आना था मैं और डर गयी ( बेटा आज तो मैं गयी सही मेरी खबर लेने वाले है आज सब ) एक भैया ने एक दरवाज़ा खोला और बोले सर sushmita आ गयी , सर ने कहा आओ सुष्मिता मैंने कहा सॉरी सर आने में काफी प्रॉब्लम हो गयी थी इस वजह से लेट हो गयी ( पर नो excuse ग़लती है तो है ) Sir ने कहा Sushmita कल को आप जॉब के लिए जाएँगी और ऐसे लेट होंगी तो कैसे काम चलेगा इतने में कहा "बैठिये "





नज़ारा कुछ यूँ था मेरे सामने 2 RJ ( Radio Jockey ) दोनों के आगे mike जहाँ मुझे बैठाया वहां भी मेरे आगे mike और mike के आगे अच्छे अच्छे के पसीने छूट  जाते है . मैं बैठी वहां गाने चल रहे थे बहुत ही पुराने गीत ( कहते है न OLD is GOLD ) . फिर मुझे बहुत ही प्यार से


Mr . Sunil ji (RJ ) ने कहा-Sushmita आप बैठिये और बहुत ही आराम से बिना टेंशन लिए बताइए क्या करती है आप ?


मैंने बताया मैं B .COM (prgm ) final year में हूँ और साथ ही मैंने radio fm का course किया है...


उन्होंने कहा ठीक है जब मैं आपसे ON AIR पूछुंगा आप यही बताना और जैसे मैं इशारा करूँगा तो समझ जाना आपको mike से कितने distance पर रहना है ( जिससे मेरी आवाज़ का level पता चलता कहीं मेरी आवाज़ फट तो नहीं रही या तीखी आ रही है या कहीं ज्यादा सोफ्ट है? )




1 sec . के लिए मैं चौंक गयी ये क्या हो रहा है क्यूंकि मुझे तो लगा मेरी internship के लिए interview लिया जा रहा है यहाँ तो पता चला मेरा खुद का ON AIR interview है ........ DU 90 .4 fm पर 11 -12 एक प्रोग्राम आता है जिसका नाम है " मेरी पसंद community से "पर 11 बजे as a guest आने के लिए कॉल ये कॉल आई थी. अच्छा तो बहुत लगा ये तो अचानक का surprise मिला पर टेंशन की ये मैं अचानक कैसे कर पाऊँगी . पर वहाँ के टीम member बहुत अच्छे है उन्होंने मुझसे बहुत अच्छे से बात की और मुझे कहा कुछ मत सोचो बस बिंदास बैठो और हमसे बातें करो - Urvashi ji (दूसरी RJ ने कहा )

  फिर क्या था उन्होंने पूछा आपको कैसे songs सुनना  पसंद है मैंने बताया सूफी तभी Mr . Sunil जी ने कह दिया हम Sushmita से एक गाना सुनना चाहेंगे ,उन्होंने मेरा एक पसंदीदा गीत प्ले किया Kailash kher का -Saiyaan . मैंने Urvashi जी को कहा ये गाना ..... ये तो मुझे बहुत पसंद है सर ने कहा देखा आपने कहा सूफी हमने चलाया सूफी ... तो मैंने कहा Sir अब मैं कौन सा गाना सुनाउंगी पहले तो मुझे फसा दिया गाना गाना पड़ेगा और प्ले भी वो ही किया जो मैंने गाने के लिए सोचा तो Urvashi बोली कोई बात नहीं तुम ये ही सुनाना ........ गाना खत्म होते ही ON AIR " चलिए Sushmita अब आपको अपना वादा पूरा करना पड़ेगा और हमारे listners को गाना सुनाना पड़ेगा



मैंने की ख्वाइश पूरी
और कुछ यूँ गुनगुनाया

"

तू जो छू ले प्यार से,


आराम से मर जाऊ
आजा चंदा बाहों में,


तुझ में ही गुम हो जाऊ में ,
तेरे प्यार में खो जाऊ ....


सैयां .... सैयां ...


हीरे मोती में ना चाहू , में तो चाहू संगम तेरा
मैं ना जानू तू ही जाने मैं तो तेरी तू है मेरा ....... "

सभी ने तारीफ़ की ( अब तारीफ़ तो करनी पड़ेगी जब उन्होंने गाने की गुजारिश की , अब गाना चाहे कैसा भी हो )





फिर कुछ देर बाद पूछा Sushmita आपको inspiration , motivation कहाँ से मिलता है अपनी लाइफ में ?



" मेरी inspiration मेरे friends है, मुझे बहुत inspire करते है अपनी ज़िन्दगी में मैं जो बनना चाहती हूँ वो सभी मुझे हिम्मत देते है, हर मोड़ पर मेरा साथ देते है मेरी गलतियों पर मुझे डांटते है , मेरी अच्छी बातों की तारीफ करते है कुछ artificial behave नहीं करे , गुस्सा आता है गुस्सा ज़ाहिर करते है ,,, बहुत अच्छे friends है मेरे "




यूँ ही बातों का सिलसिला चलता रहा समय कब बीत गया पता ही नहीं चला , मैं RJs के साथ वो मेरे साथ बहुत घुल -मिल गए थे मुझे 1min . को भी यह एहसास नहीं हुआ की मैं पहली बार इन सभी से मिल रही हूँ बातें कर रही हूँ ....


Urvashi जी ने कहा Mam यह Sushmita बहुत अच्छी लड़की है इसको तो internship दे ही दीजिये इसका बात करने का लहजा बहुत अच्छा है , इसको radio मे बहुत interest भी है .


मेरे friends की wishes ने बहुत साथ दिया आज , मैं उनसे शुक्रिया करना चाहूंगी और कहना चाहूंगी


यूँ ही हर घड़ी मेरे साथ रहना
इस सफ़र को और खुबसूरत बनाते रहना




Sushmita...

Monday, January 11, 2010

10/11 january....

        11 january ek aur thanda thanda din (ha ha ha), last year se jyada thand hai is baar. Aji sardiyo me thand nahi hogi to kab hogi.. chaliye गप-शप  karte hai , aaj ki khichdi kaise paki i mean aaj poora din kya kiya maine...

मैं एक ख़ास पल, जो मेरे लिए था उसे आपके साथ बांटना चाहूंगी ...

          
       Aaj evening me mujhe ek awaaz sunaai di bahut hi khubsurat awaaz . Ji haan ji haan jaanti hu aap kahenge Awaaz MADHUR hoti hai KHUBSURAT nahi par aisa kehne se mein nahi ruk saki kyunki itni UMDAA awaaz, itna tej, itni graceful,dil tak pahunchne wali awaaz jo parichaye de rahi thi ki yeh aur kisi ki nahi ek naye kalaakar ek naye singer TOSHI SABRI ki hai. Toshi Shabri ki awaaz ki deewani mein tab se hu jab se Toshi ne apne safar ki shuruwaat VOICE OF INDIA prgrm se ki thi aur mujhe aaj bhi yaad hai Toshi ne apni pehchaan kuch hi dino me bana li thi aur bado se le kar youth tak ko yeh awaaz bahut pasand aai. Apne pehle audition me Toshi ne ek sufi geet gaya jiske bol the - PIYA RE... aur apne pehle hi audition performance itni best di thi ABHIJEET DA ne kaha " jab hamaare desh me 24 carat ka gold milta hai to videsho se 18 carat gold ki kya jarurat hai" itni badi taareef audition me hi ...

     Maine har ek gaana suna hai jo bhi ab tak Toshi ne gaya , ek dum laazawaab singer hai. Sufiyaane ke baadshaah. Kuch yu hua aaj mein kitchen me thi aur papa tv par AMUL MAHA MUQABLA dekh rahe the achaanak mujhe awaaz suni di main aise paaglo ki tarha room me aai aur sab ko kaha chup ho jaao Toshi aa gaya ( ha ha ha) Toshi ne hamesha ki tarha ek aur sufi geet gaya SAIYYAN.... jis geet me Kailash kher ne apni awaaz di hai , par Toshi ne yeh gaana gaya aur kamaal gaya.
    
     Aaj poore din ka mera favourite song SAIYYAN meri jubaan par chad gaya hai , kaash mujhe ek mauka mile aur is gaane ko mein sirf us insaan ko sunaau jo mere liye bahut khaas ho us din ka intazaar rahega jab mein poore dil se ye gaana kisi ko sunaau . Darasal mein kabhi kisi ko gaana nahi sunaati thoda sharmaati jyada hu ( ha ha ha ) ... aur kabhi gaaya bhi hai toh aisa ke sunne me bura na lage kam se kam thik thik lage .

    Ek dil ki khwaaish hai jise bhi me gaana sunaau wo bahut hi dil se gaaya ho aur awaaz par dhyaan na de kar gaane ke lyrics samjhe .... (ha ha ha) meri awaaz achhi nhi hai phir bhi kuch baatein karne ke liye koi aur  zariye bhi apnaaya jaata hai jaise ki maine pehle bhi kaha tha MUSIC IS THE LANGUAGE OF THE SOUL .......




                                                                    dream....



Sushmita..

Saturday, January 9, 2010

8 जनवरी

     कल 8 जनवरी ,इस मौसम का सब से ठंडा दिन और मौसम विभाग के मुताबिक़ पिछले 5 सालो में, अधिकतम तापमान सब से निचले स्तर पर चला गया था. हर तरफ धुंध की चादर बिछी हुई थी . सर्द हवा का एहसास बहुत ही रूमानी था , रूमानी कहू या जबरदस्त ठण्ड . बहुत बहुत बहुत ठण्ड थी कल और मेरे लिए ....



सर्द हवा का तेज झोखा
जैसे इसने कस के बाहों में भरा 
आगे बढ़ते ही लगता
जैसे इसने कदमो को जकड़ा


चेहरे पर हवा और कोहरे की मार
आँखों के आंसू को पलकों का साथ
हाथों की उंगलिया बेजान
उसमे बाँवरे मन की पुकार


चलना तो है आगे, बढ़ना तो है आगे
यू मायूस होने से क्या होगा
जो किया वो भुगतना पड़ेगा
फिर आंसू हो या हवा इससे क्या गिला


   
   ठण्ड से कांपती हुई जब वापस घर आई , बिना कुछ बताये बिना कुछ सुने खामोशी के साथ एक कोने में बैठी. चलने की हिम्मत नही हो रही थी. ठण्ड से टूट चुकी थी ,ठिठुरती हुई अपने बिस्तर पर बैठे-बैठे आखे बंद करे कब एक झपकी लगी पता ही नहीं चला . पर वो झपकी नहीं थी बस शान्ति थी........ पलको से बहता आंसू गालो को छूता हुआ गर्दन पर पहुंचा इसी के साथ आँखे बंद करते ही पलके खुली , किस ने कहा वो एक झपकी लगी ? बस वो मंज़र शांत करना था खुद को खुद से दूर करना था ....