Wednesday, November 24, 2010

ठहर जाने दो .....


खोई खोई सी ये फिज़ा
खोई खोई सी हूँ मैं 
 
जो कहती है सर्द हवा
तो खो जाती हूँ मैं

इस भीड़ में चलते हुए 
शायद सब से जुदा हूँ मैं

 जो खोई है सब में कहीं 
 वो अजब पहेली हूँ मैं

 कुछ और नहीं
 सिर्फ आपके दिल की आवाज़ हूँ मैं....
        

       बादलों में छुपा सूरज कुछ यूँ मुस्कुरा रहा था , जब तलाश रही थी नज़रें उसको तो एक ख्याल आ रहा था ...
सामने गाड़ियो की लम्बी कतार , एक के पीछे एक बस जल्दी थी तो ग्रीन लाइट क्रोस करने की . रिक्शे में बैठे ग्रीन लाइट के इंतज़ार में  देखने लायक नज़ारा था तो बस ,,, traffic का . इसी बीच एक खुबसूरत- सा पल गुजारिश कर रहा था कि कोई नज़र उसको कैद कर ले और ले जाये अपने साथ . पटरी पर कबूतर traffic के शोर से इधर- उधर बिखर गए ........ उस उड़ान को देखते ही देखते जब देखा आसमान कि ओर तो बहुत अच्छा लगा. एक टक निहारती रही फिर मुस्कुराई , सोचने लगी इस भीड़ से हट कर भी एक दुनिया है ....
     पता ही नहीं चला कब रेड लाइट ग्रीन हो गयी और सब के साथ फिर वही एक के पीछे एक वाहन ...... रिक्शा वाले भैया ने कब फुर्ती से ग्रीन लाइट क्रोस की और वो सर्द हवा मुझे छू कर अपने होने का एहसास दे गयी पर कुछ देर तक वहीं..........
खोई खोई सी थी मैं ..... 
  
                                                      Sushmita....

Saturday, November 20, 2010

क्यूंकि बूढ़ा हो चला हूँ मैं .....( एक ख़त )


जिन आँखों में सपने हुआ करते 
अब उन आँखों की रौशनी धुंधलाने लगी 

उन नन्हे कदमो से
एक गीत गुनगुनाने लगी 

जिन नन्हे कदमो को बढ़ना सीखाया 
उन नन्हे कदमो से एक सपना सजाया 

अब उन कदमो में जान नहीं 
जहाँ लाड -दुलार ने बचपन बिताया 

क्यूंकि बूढ़ा हो चला हूँ मैं ..... 

सहारा है सफ़र में 
एक लाठी का

किस को सुनाऊ मन की बात
कहने को है बहुत-सी बात  

ढूंढ़ता हूँ परछाई में 
अपनी ही परछाई 

आँखों के आंसू भी
तरसते है उस स्पर्श को

जीवन के हर मोड़ पर
कड़ी से कड़ी जोड़ता चला

एक राही हूँ इस सफ़र का
अकेला ही तड़पता रहा

क्यूंकि बूढ़ा हो चला हूँ मैं  .....





  











Kyunki Boodha Ho Chala Hun Main..... (ek khat)

jin aankhon me sapne hua karte
un aankhon ki roshani dhundhlaane lagi 

un nanhe kadmon se
ek geet gungunane lagi

jin nanhe kadmon ko badhna sikhaya
un nanhe kadmon se ek sapna sajaya

ab un nanhe kadmon me jaan nahi
jahan laad-pyaar me bachpan beetaya

kyunki boodha ho chala hun main........

sahara hai safar me
ek laathi ka

kis ko sunau apne mann ki baat
kehne ko hai bahut si baat

dhundhta hun parchhai me
apni hi parchhai

aankhon ke aansu bhi taraste hai
us sparsh ko

jeevan ke har modh par
kadi se kadi jodhta chala

ek raahi hun is safar ka
akela hi tadapta raha

Kyunki boodha ho chala hun main......
                                                                                               Sushmita ...