Tuesday, March 29, 2011

सिलवटें ........


बिखरे पन्नो में वो टेढ़ी - मेढ़ी रेखाएं
जैसे उबड़- खाबड़ सी लगती राहें                                         

वो गीली रेत को नम करती थी लहरें
जैसे पानी पर रौशनी चाँद की चमके 

आँखें मूंदे हाथों से छिपाती नज़रें
जैसे बंधन तोड़ हवा खिड़की से गुज़रें

जुल्फों को लहराता यूँ हवा का झोखा
जैसे गुनगुन-सी आवाज़ ने ये लम्हा रोका

गुलाबी चादर में लिपटा एक तन
जैसे  मूरत- सा बन बैठा ये पल

सिलवटें थी चादर की दूर कहीं  
जैसे करवट बदलती सुबह वहीं 

कुछ यूँ बीती रात से,, क्या पूछे     
जैसे बिखरे थे वो पन्ने साथ में तेज लहरें ......


         Sushmita....