रातें गिनती रही
राहें चलती रही
ख़ामोशी कायम रही ....
न जाने मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है
एक मुस्कराहट के लिए सफ़र करना होता है
सोचती रहती हूँ हर बार ही ऐसा क्यों होता है
पर हर बार दिल तस्सली देता रहता है
" इतनी जल्दी नहीं हारना
इतनी जल्दी नहीं रुकना "
मन बदलते हुए , कहीं ओर देखते हुए
मुस्कुरा देती हूँ , मुस्कराहट कायम रखने के लिए
कभी - कभी तो सोचती हूँ कि
" मुझसे अच्छी तो यह हवा है
जाने कहाँ से आती है , जाने कहाँ को जाती है
कभी तेज कभी शांत बस बहती रहती है
या यूँ कहू बस चलती रहती है "
मेरी जिंदगी भी कुछ ऐसी ही है
कभी तेज तो कभी शांत
सीखना तो चाहती हूँ बदलना तो चाहती हूँ
" काश मैं ऐसी ही बन जाऊ और कभी न रुकू "
हमेशा कि तरह फिर कुछ अधूरा-अधूरा सा लगने लगा .........
Sushmita...
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ReplyDeleteabay kya ho gaya hai tuje....
kahain gaalib ki aatma to nahi aa gayi na tujme...
yaar tu toh mast likh rahi hai ...
DUCR jaane ka kuch toh fayda hua...
hi hii hiii
AmAzing SuSH !!!
par yaar...
ek pic bhi laga le na yaar...
it'll look cool...
mere blog me meri pic ki nhi .. mere thoughts ki jarurat hai.. jo mujhe improve karne hai
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