Saturday, January 9, 2010

8 जनवरी

     कल 8 जनवरी ,इस मौसम का सब से ठंडा दिन और मौसम विभाग के मुताबिक़ पिछले 5 सालो में, अधिकतम तापमान सब से निचले स्तर पर चला गया था. हर तरफ धुंध की चादर बिछी हुई थी . सर्द हवा का एहसास बहुत ही रूमानी था , रूमानी कहू या जबरदस्त ठण्ड . बहुत बहुत बहुत ठण्ड थी कल और मेरे लिए ....



सर्द हवा का तेज झोखा
जैसे इसने कस के बाहों में भरा 
आगे बढ़ते ही लगता
जैसे इसने कदमो को जकड़ा


चेहरे पर हवा और कोहरे की मार
आँखों के आंसू को पलकों का साथ
हाथों की उंगलिया बेजान
उसमे बाँवरे मन की पुकार


चलना तो है आगे, बढ़ना तो है आगे
यू मायूस होने से क्या होगा
जो किया वो भुगतना पड़ेगा
फिर आंसू हो या हवा इससे क्या गिला


   
   ठण्ड से कांपती हुई जब वापस घर आई , बिना कुछ बताये बिना कुछ सुने खामोशी के साथ एक कोने में बैठी. चलने की हिम्मत नही हो रही थी. ठण्ड से टूट चुकी थी ,ठिठुरती हुई अपने बिस्तर पर बैठे-बैठे आखे बंद करे कब एक झपकी लगी पता ही नहीं चला . पर वो झपकी नहीं थी बस शान्ति थी........ पलको से बहता आंसू गालो को छूता हुआ गर्दन पर पहुंचा इसी के साथ आँखे बंद करते ही पलके खुली , किस ने कहा वो एक झपकी लगी ? बस वो मंज़र शांत करना था खुद को खुद से दूर करना था ....









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