Tuesday, December 22, 2009

एक सच ..

   हमेशा की तरह आज फिर मैं आपके साथ हूँ ... कहाँ? यहाँ... जहाँ मैं अपने मन की हर बात आपसे कहती हूँ और आप .... आप अपने चेहरे पर अपना हाथ रख, आँखों मैं उम्मीद के साथ मेरा इंतज़ार करते हैं ( हा हा हा ) बहुत मज़ाक करने लगी हूँ ना मैं ?  

   क्या करू जब तक मैं अपनी तारीफ़ नहीं कर देती मेरा दिन नहीं गुज़रता. चलो ये भी छोड़ो तारीफ़ किये बिना तो मन फिर भी लग जाता है पर आप सब के बिना तो बिल्कुल भी मन नहीं लगता ... अब हंसिये हाँ हाँ कब क्यों मुस्कुराएंगे ? अब तो आपकी तारीफ़ हो रही है ना .. बस हाँ बस

                                                                     

                                                          

आप भी सोच रहे है ना ये Sushmita को आज हो क्या गया? बड़ी ही अजीब है ये लड़की, कभी  कहती है AISE  NAA  JAAO , कभी कहती है KAASH ... ,कभी लड़ती है , कभी कहती है TERI JUSTAJOO , कभी कहती है बहुत खुश हूँ , कभी कहती है SAJINI , कभी KYA KAHU , और पता नहीं आज क्या कहने वाली है ... कुछ ही  दिन में हमे ही पागल कर देगी .

वैसे मैं आज कुछ सोच रही थी ,वो यह कि.... बताऊ ..??? बताओ बताओ ? बताऊ क्या ?



हा हा हा


वो यह कि अगर ऐसा होता तो कैसा होता ,, मतलब अगर मैं ना होती तो इस ब्लॉग का क्या होता (हा हा हा )


     हममम .. जी नहीं मैं सोच रही थी कि क्यों ना मैं वापस से रंगों कि दुनिया में चली जाऊ . रंगों कि दुनिया जहाँ हर वक़्त आपका दिमाग रंगों के साथ जुड़ा हुआ होता है, नहीं समझे?अरे भई रंगों की दुनिया मतलब हाथ में ब्रुश और सामने एक कैन्वस और आपकी सोच आपकी कल्पना आपके सामने उतर कर कैन्वस पर पहुँच जाती है.
    मैं रंगों के साथ खेलना चाहती हूँ. ऐसे रंग जो मुझे अपने साथ खेलने के लिए मजबूर करते है और उन्ही के साथ मैं खुश भी होती हूँ . जून 2007 में मैं 1 महीना pencil और sketch file के साथ रहती थी और रंगों के साथ friendship कर ली थी क्यूंकि उस समय आप लोग नहीं थे ना ......सब का अपना अपना एक शौक होता है मेरा भी है कुछ अलग और creative activity like painting sketching .


      मुझे याद आ रहा है उन दिनों 12th का result आया था और मैंने Delhi college of fine Art में addmission लेना था जिसके लिए मुझे entrance exam clear करना था जिसके लिए मुझे बहुत मेहनत करनी थी. मैंने 1 महीने की classes लेने की सोची जिसके लिए मुझे 1 महीने का short term course करना पड़ा. स्कूल लाइफ में मैंने बस में कभी travel नहीं किया. मुझे बहुत डर लगता था पता नहीं कैसे कैसे लोग होते है उन लोगो का देखने का नजरिया और पता नहीं क्या क्या , बहुत डर   लगता था क्यूंकि एक बार मैं अपनी मम्मी के साथ कहीं बस में गयी थी और उस बस मैं गिनती के 7 -8 लोग थे जिनमें से एक ने drink कर रखी थी उस आदमी को देख कर मुझे डर लगने लग गया था और उस दिन से मैं कभी बस में नहीं गयी.


मैंने मम्मी को कहा मैं कभी बस में travel नहीं करुँगी. पर जून 2007 में मुझे बस में सफ़र करना पड़ा. हुआ यू कि classes लेने जाना था और institute दूर भी था. अब रोज़ तो घर से कोई छोड़ने जाने से रहा तो बस फिर क्या था चलो Sushmita महारानी चुप चाप बस में बैठो. अब पहले दिन तो पापा जी के साथ गयी पापा मुझे रास्ता बताते हुए जा रहे थे क्यूंकि कमाल कि बात ये थी कि मैं अपने स्कूल के अलावा कहीं ओर का रास्ता बिलकुल नहीं जानती थी. ना किसी रिश्तेदार के जाते न कहीं ओर तो कैसा पता होता कौन सी जगह कहा है . चल पड़े और रास्ता बताते बताते पापा यह भी देखते जा रहे थे कि कौन सी बस मुझे institute के रास्ते तक पहुंचाएगी. फिर पापा ने मुझे रास्ता समझा दिया.institute में मेरा पहला दिन था बहुत अच्छा रहा . 2nd day मुझे बस में जाना था . बस में बैठी conductor को कहा 'भईया यहाँ जाना है और  बस स्टैंड आने से पहले बता देना', बस conductor ने कहा  'आगे आ जाओ आपका स्टैंड आ गया' . मैं उतरी जैसे ही मैंने देखा .. देखा तो कुछ जाना पहचाना सा area ही नहीं लग रहा अब मैंने एक रिक्शा वाले को कहा भईया यह address कहा पड़ेगा उसने कहा दूर है. दरअसल मैं काफी आगे उतर गयी थी वैसे conductor अपनी जगह सही था पर स्टैंड पर कोई नाम ना होने कि वजह से गलत उतर गयी थी और institute रिक्शा पर गयी  ,रिक्शा वाला गलियो गलियो से ले जाने लगा और मुझे डर लगने लगा मैंने रिक्शा वाले को कहा- 'भईया ऐसा है मुझे घुमाओ मत सीधा सीधा रास्ते से ले जाओ मैं यहाँ कोई नई नहीं हूँ सारे रास्ते पता है' , उसने एक जगह उतार दिया गुस्सा तो बहुत आया पर बाहर कभी नहीं निकली थी बड़ा अजीब भी लग रहा था बोलू तो क्या बोलू एक दो बात कही और पैसे दिए. जरा दूर एक रिक्शा वाले से कहा भईया ये address है और मुझे सीधा रास्ता बताओ कहाँ है उसने बताया ऐसे ऐसे जाओ पहुँच जाओगे तो मैंने कहा ले चलो फिर ..... finally भला हो उस भईया का उसने सही पहुंचाया ( इस बीच ना मेरे पास कोई मोबाइल ना दूर दूर तक कोई PCO मैं बहुत ज्यादा परेशान ) . पता है क्या हुआ ? मैं पूरा 1 घंटा लेट पहुंची . क्लास में बैठी तभी घर से फ़ोन पहुंचा कि क्या आपके institute में Sushmita पहुँच गयी मैंने मम्मी से बात की और कहा हाँ मम्मी परेशान ना हो मैं पहुँच गयी.


 घर पर आते ही सब चुप मैंने कहा क्या हुआ भाई बोला तुझे मोबाइल दिलाना है आज पापा ने कहा है . मैंने कहा क्या हो गया ऐसा ?




   मम्मी ने बताया मेरे जाने के बाद पापा को tention हो गयी और मम्मी को कहते रहे लड़की को ऐसे अकेले भेज दिया पता करो पहुंची भी है या नहीं आज तक अकेले कहीं नहीं गयी और बस में तो कभी भी नहीं. पापा ने ये भी कहा मेरा मोबाइल दे देते कम से कम फ़ोन तो कर लेती . मैंने मम्मी को बताया आज ऐसे ऐसे हुआ और लेट भी हो गयी , तो अगले दिन से पापा का मोबाइल ले कर जाने लगी और 3 -4 दिन में मुझे मेरा अपना मोबाइल दिला दिया गया.


    रोज़ जाना sketching करना बहुत अच्छा लगता था ... 4 -5 दिन बाद मुझे एक still life sketch करने को कहा ,pencil shading ... अब मैं sketch करने लगी बहुत देर हो गयी मैडम आई उन्होंने समझाया कैसे हम आसानी से बिल्कुल accurate बना सकते है. फिर क्या था रोज़ एक sheet ली और lights off सामने कुछ दूर पर एक स्टूल उस पर 4 -5 artical और मेरे सामने स्टैंड बस sheet set की और रोज़ sketching . धीरे धीरे sketching स्पीड बढ़ गयी और मैं ज्यादातर still life sketch करना पसंद करती थी .और भी बहुत कुछ सीखा कलर आर्ट , पेन आर्ट .... पेंटिंग्स देखती थी कैसे बनाते है, जो पूरा साल सीखते थे उन बच्चो में एक जूनून था, वहां कुछ मूर्ति कला भी सीखते . Sir हमे एक बार बाहर रोड पर ले गये और बोले जो भी रोड पर दिख रहा है sketch करो चाहे कोई पानी वाला हो , छोले - कुल्चे की रेडी हो, चाहे बिल्डिंग हो. और हम करते भी थे ऐसा.. रोड पर खड़े खड़े sketching ,लगता था कि "हाँ, हम कुछ सीख रहे है". दिन बीतते गए और एक महीना पता ही नहीं चला कैसे गुज़रा जब मेरा पेपर था Delhi College of Fine Art में उस दिन Sir ने कहा था "Sushmita, हो जायेगा selection चिंता मत करो".. और यह बात Sir ने मेरे पापा से भी कही जब मैं पहले दिन गयी थी क्लास में , उन्होंने मेरी sketching  dekhi और पापा को तभी कह दिया आपकी बेटी आपकी उम्मीदों को जरूर पूरा करेगी ....


9 जुलाई 2007 को मेरा exam था और अगले दिन ही मेरा बर्थडे .. मैंने दुआ की थी मेरा बर्थडे का गिफ्ट यही होगा अगर मेरा exam clear हो जाए , 12 जुलाई को रिजल्ट बहुत डर लग रहा था  पता नहीं क्या होगा क्यूंकि सुनने में आया था कि वह पेपर clear बहुत मुश्किल से होता है , रिजल्ट के समय से रिजल्ट 2 -3 घंटे लेट आया ... जानते है क्यों ??




      क्यूंकि जिस बच्चे के माँ - बाप वहां जा कर पैसे खिला देते उनके बच्चो का नाम लिस्ट में होता ... मेरे साथ बैठी लड़की का selection हो गया जिसका २ पेपर में से एक भी पेपर अच्छा नहीं हुआ था . जानते है कितना दिल टुटा था मेरा? जब मैंने रिजल्ट में ऐसा माहोल देखा ... मम्मी ने कहा कोई बात नहीं अगले साल पेपर दे देना पर मैंने भी सोच लिया मुझे वहां कुछ नहीं सीखना जहाँ बेईमान लोग बैठे है रिशवत ले कर उस बच्चे को पास कर रहे है जिसको आर्ट कि A B C D नहीं पता . मैं ये नहीं कहती कि मेरा नंबर वहां नहीं आ पाया इसलिए मैं ऐसे कह रही हूँ , मेरा नंबर ना आता मैं खुश थी अगले साल जरूर पेपर देती और पक्का मैं addmission ले लेती . पर क्यों ? क्यों मैं रिशवत दू किसी को ?




    मेरी आँखों के सामने मेरी जिंदगी से जुड़ा यह जीता जागता किस्सा है , कितनी उम्मीदें थी मुझे अपने आप से और बाकी सभी की भी. सिर्फ पैसों के आगे किसी कि कला कोई माईने नहीं रखती ... पैसे से हर काम होता है अगर उस समय मेरे पास पैसा होता तो आज मैं final year में होती और कुछ ही दिनों में डिग्री प्राप्त कर लेती . उसके बाद 2 बार मौका पड़ा जब मैं 500 रुपये का फॉर्म भरती और पेपर देती , पर इतने बेईमान लोग है किसी को 500 रूपये कि कोई एहमियत नहीं . बस अपनी जेब भरने से मतलब है , उस दिन के बाद से मेरा मन हट गया था कभी पेंसिल को हाथ में नहीं लिया.


      मैं कहती हूँ आज " किसी कि उम्मीदों कि यह क़द्र होती है आज" ?. इंसान इंसान का दुश्मन बन गया , पैसे के आगे कुछ भी नहीं .... दुनिया चाहे  कुएं में गिरे. ऐसे लोंगों को पैसे से ही प्यार है , पैसा खाते है ,पैसा पीते है , पैसा माँ - बाप रिश्तेदार सब है .

मतलब हम तो बेवक़ूफ़ है फॉर्म भरे तो पैसा दे वो पैसा भी इन लोंगों कि जेब में जाए और उपर से रिशवत...... हे भगवान् !

देख तेरे संसार कि हालत क्या हो गयी भगवान् कितना बदल गया इंसान .. कितना बदल गया इंसान !!


      और देखो आपसे KUCH BAATEIN ... करते करते समय कब बीत गया पता ही नहीं चला ,,, अरे रात के 1 : 55 बज चुके है मतलब दिन का आखिरी पहर अब तो हाथ बहुत ही ज्यादा ठंडे हो गए लिखने की हिम्मत नही हो रही है और निंदिया रानी भी आँखों में है , जा रही हूँ सोने वरना खाने पड़ेंगे खूब डंडे क्यूंकि मेरी मम्मी जग गयी ना तो दूसरा सच लिखने लायक नहीं रहूंगी ...




खुश रहिये मुस्कुराते रहिये और यूँ ही kuch baatein .... साथ करते रहिये.

शुभ रात्री.......


आपके लिए










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